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जो गलत कर्मफल की ओर आकर्षित है, उसका हर कर्म गलत होगा || आचार्य प्रशांत, भगवद् गीता पर (2019)

2019-11-25 21 Dailymotion

वीडियो जानकारी:<br /><br />शब्दयोग सत्संग<br />3 अगस्त, 2019<br />पुणे, महाराष्ट्र<br /><br />प्रसंग:<br />श्रीमद्भगवद्गीता गीता (अध्याय 4, श्लोक 14)<br /><br />न मां कर्माणि लिम्पन्ति न मे कर्मफले स्पृहा ।<br />इति मां योऽभिजानाति कर्मभिर्न स बध्यते ॥<br /><br />भावार्थ :<br />कर्मों के फल में मेरी स्पृहा नहीं है,<br />इसलिए मुझे कर्म लिप्त नहीं करते,<br />इस प्रकार जो मुझे तत्व से जान लेता है,<br />वह भी कर्मों से नहीं बँधता॥<br />-----------<br />कौन सा कर्मफल चाहिए? क्या उससे हमें लाभ भी है?<br />जीवन में चाहने योग्य क्या है? जीव की अंतिम चाह क्या है?<br />आशा पूर्ण होने के बाद भी क्यों अपूर्णता छोड़ जाती है?<br /><br />संगीत: मिलिंद दाते

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